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"वक्त बहुत कम है / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
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रख लें छुपाकर कोई अखबार। | रख लें छुपाकर कोई अखबार। | ||
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13:42, 22 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण
वक्त बहुत कम है-
कविता की जेबों में जल्दी से भर लो
फटे-पुराने रिश्ते
नरगिस के फूलों की खुशबू
चूड़ियों की खनखनाहट
बैलों की घण्टियाँ
चाँद-तारों की कहानियाँ
हो सके तो छुपा लो कहीं भी
दादी का, नानी का बटुआ
थोड़ा-सा पानी
थोड़ा -सी आग
थोड़ा-सा छल
थोड़ा-सा राग
कविता के आँचल में बाँध लो चुराकर
थोड़ी-सी नफरत
थोड़ा-सा प्यार
लोहे की टोपी
हँसुए की धार
आधीअधूरी -सी छोटी-सी खुशियों का-
रख लें छुपाकर कोई अखबार।