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"कुंडिलपुर एक नगर अजोधेया / अंगिका लोकगीत" के अवतरणों में अंतर

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17:36, 27 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इच्छा के विरुद्ध विवाह निश्चित करने के कारण रुक्मिणी का घर में छिप जाने, माता पिता द्वारा मनाने पर घर से उसके निकलने, उसे देखकर शिशुपाल के प्रसन्न होने, समय पर कृष्ण के पहुँचने और रुक्मिणी-हरण कर ले जाने का उल्लेख इस गीत में हुआ है।

कुंडिलपुर एक नगर अजोधेया, जहाँ बसै भिसम<ref>भीष्म</ref> नरेस हे।
हुनकहिं<ref>उनके</ref> कुल भय सुन्नरि रुकमिनि, भेलैन बिआहन जोग हे॥1॥
एतना बचन जब सुनलनि राजा, बारिहिं<ref>बारी। एक जाति, जो विवाह के समय नाचने-गाने तथा निमंत्रण देने का काम करती है</ref> दिहले हँकार हे।
देहो गे बारी गे हाथ सुपारी, देस पैसी बर खोजै हे॥2॥
हाथ सुपारी लै बारिहिं बिलमै, सुनु राजा भिसम नरेस हे।
कौने कौने देस खोजब राजा, कौने देस सहदेस<ref>संदेश</ref> हे॥3॥
उत्तर खोजब दखिन खोजब, खोजब मगहा मुँगेर हे।
तोहरे जुगुति रुकमिनि बर नहीं पैलें, आजु मिलल सिसुपाल हे॥4॥
एतना बचन जब सुनलनि राजा, बारी दिहलनि हँकार हे।
लेहो गे बारी गे हाथ सुपारी, देस पैसी नेवता देहु हे॥5॥
हाथ सुपारी लै बारिहिं बिलमै, सुनु राजा भिसम नरेस हे।
कौने कौने देस नेवता पठावल, कौने देस सहदेस हे॥6॥
गाया नेवतब गाजाधर नेवतब, नेवतब उड़ीसा जगरनाथ हे।
उपरे सेॅ नेवतब वहे भगमान जी, धरती सेॅ नवेतब सेसनाग हे॥7॥
चान सुरुज अदित मुनि नेवतब, हलुमंत अयता सुजान हे।
गाया अयता गजाधर अयता, अयता उड़ीसा जगरनाथ हे॥8॥
उपर सेॅ अयता उहे भगमान जी, धरती सेॅ अयता सेसनाग हे।
चान सुरुज अदित मुनि अयता, हलुमंत अयता सुजान हे॥9॥
बाबा के एँगना चनन केरा गछिया, झिरि झिरि बहय बयारि हे।
तहिं तर ठाढ़ि भेलि सुन्नरि रुकमिनि, ठाढ़े गिरलि मुरछाइ हे॥10॥
काहे ल माइ हे माध्ज्ञ नहैलें, काहे ल कातिक मास हे।
काहे ल माइ हे कठिन बरत साधलें, आजु बर मिलल सिसुपाल हे॥11॥
घरऽ ल माइ हे माघ नहैलें, बर ल कातिक मास हे।
सीरी किसुन ल कठिन बरत साधलें, आजु मिलल सिसुपाल हे॥12॥
जब हे सिसुपाल गाँव गोंढ़ा ऐला, रुकमिनि ठोकलनि केबाड़ हे।
आइ हे माइ हे पर हे परोसिन, रुकमिनि बुझबै लागल हे।
किए रुकमिनि ठोकल्ह केबाड़ हे॥13॥
माई बाप मिलि बुझबै लगलनि, खोलऽ रुकमिनि बजर केबाड़ हे।
भाइ भौजाइ मिलि बुझबै लगलनि, खोलऽ रुकमिनि बजर केबाड़ हे॥14॥
सखि सहेली मिलि बुझबै लगलनि, सिसुपाल दुलरुआ चलि आबै हे।
जब हे सिसुपाल दुआरी बीच ऐलै, रुकमिनि खोललै केबाड़ हे॥15॥
मुँह में रुमाल दै हँसथिन सिसुपाल, भले रुकमिनि टुटल धेयान हे।
जब हे सीरी किसुन सुरजनाथ<ref>सूर्य के रथ के समान वेगवान रथ</ref> साजल, रुकमिनि लिहलै चढ़ाय हे॥16॥
मुँह में रुाल दै कानै सिसुपाल, काहे आयल काहे जायब हे।
आइ हे माइ हे देखन जैती, कौने हम देभैन जबाब हे॥17॥

शब्दार्थ
<references/>