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"साधना / आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत" के अवतरणों में अंतर
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साधना कइला से मन में ही होला
नाहीं त ऊ बड़ा मोट बनि जाला।
मेंही भइला से मन व्यापक होला
दूर-दूर के सभ बात ऊ देखेला।
देखला से समझ-बूझ के पैर धरेला
एसे कबहीं ऊ ना गिरेला।
केहू ना ओकरा पर थपरी बजावेला
इज्जत के संगे ऊ दुनिया में रहेला।
मेंही भइला से सभ किछ बुझाला
दोसरा के दुःख-दर्द समझ में आवेला।
हरदम ऊ सभकर मदद करेला
सभका में ऊ भगवान के पावेला।