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"झिलमिल पातरी रे इमलिया / अंगिका लोकगीत" के अवतरणों में अंतर

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16:32, 28 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में इमली को नायिका के प्रतीक के रूप में बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है। जब इमली फलने लगती है, तब बादल घिर आते हैं, फिर वर्षा होने लगती है, जिससे महल चूने लगता है और बालम भींगने लगता है। अपनी रक्षा के लिए वह चादर ओढ़ने लगता है, जिसे देखकर उस नायिका की ननद का कलेजा फटने लगता है।
इस गीत में जहाँ उस यौवनवती कृशांगी सुंदरी नायिका के प्रेम-रस में उसके पति का गोता लगाना चित्रित है, वहाँ वह शोख अपनी ननद से मजाक करने से भी बाज नहीं आई है।

झिलमिल पातरी<ref>पतली; तन्वंगी</ref> रे इमलिया।
जब रे इमलिया फूले लागे, घेरे लागै रे बदरिया॥1॥
जब रे इमलिया फरे लागै, घेरे लागै रे बदरिया।
अब बरसे लागै बदरिया, झिलमिल पातरी रे इमलिया॥2॥
जब रे बदरिया बरसै लागै, चूवै<ref>चूने लगा</ref> लागै रे महलिया।
जब रे महलिया चूवै लागै, भीजै लागै रे बलमुआ॥3॥
जब रे बलमुआ भीजै लागै, ओढ़े लागै रे चदरिया।
झिलमिल पातरी रे इमलिया॥4॥
जब रे चदरिया ओढ़न लागै, देखन लागै रे ननदिया।
जब रे ननदिया देखन लागै, फाटै लागै रे करेजिया।
झिलमिल पातरी रे इमलिया॥5॥

शब्दार्थ
<references/>