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"भरत / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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पुरुष रतन यहि कुल में जनम रामा।
होइलैय भरत गुणवान हो सांवलिया॥
उनको जनमुआं से सबतर छाय गेलैय।
धन-बल-हुनर लहर हो सांवलिया॥10॥
घर घर शहर नगर दर दर रामा।
खिड़ी गेलैय भरत के नाम हो सांवलिया॥
‘लछुमन’ भारत के देश छैयते बेस रामा।
सब मिली जय जय बोलू हो सांवलिया॥11॥
पुण्य भूमि जनम भूमि करम धरम भूमि।
जय जय भारत स्वदेश हो सांवलिया॥
भरत के राज केर सात पीढ़ी बाद रामा।
कुरु महराज केर राज हो सांवलिया॥12॥