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"हीरे और नग्नता / महेश सन्तोषी" के अवतरणों में अंतर
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चूँकि अमीर हीरों की रोटियाँ बनाकर नहीं खा सकते,
ना ही अपने हीरे दुनिया पर मुफ्त में लुटा सकते,
इसलिए हीरों की भद्दी नुमाइशों से बाज नहीं आते!
कल एक खबर थी कि एक मॉडल सेण्डिली पर
हीरे जड़े, रेम्प पर निर्वस्त्र खड़ी थी,
उसके पहले एक दूसरी खबर थी कि एक मॉडल सिर्फ हीरों से जड़ी थी!
और, बिना बिकनी के ही मंच पर खड़ी थी!
यह सौन्दर्य की साधना नहीं है, किसी रूप की उपासना भी नहीं है,
यह तो सीधी-सीधी वासना है, जो रेम्प पर निर्वस्त्र होकर खड़ी है।
गरीबों के गाल पर एक तमाचा-सा, अमीरों की विलासिता
हीरों जड़ी नंगी खड़ी हो!
अमीर अपनी विलासिता पर हीरों की मोहर लगाना चाहते हैं,
अमीर चाहते हैं कि उनके पैसों के आगे हर वक्त
हर घड़ी, सभ्यता नंगी खड़ी हो!!