भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अलग-अलग ईश्वर / महेश सन्तोषी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तोषी |अनुवादक= |संग्रह=हि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:45, 2 मई 2017 के समय का अवतरण
हे ईश्वर!
तुममें मेरी आस्था तो निरन्तर शत-प्रतिशत रही,
पर, तुम्हारे लिये मेरी हर पूजा आधी भी रही, अधूरी भी रही।
मैं आस्था और पूजा के बीच की खाइयाँ पाटने पुल बनाता तो रहा,
पर, औपचारिकता बीच में बाधक बनकर खड़ी रही।
तो मैं, यह कभी पूरी की पूरी नहीं कर सका,
लेकिन इससे मैं अपनी आस्था का क़द भी तो नहीं कर सका।
पर आस्था में महज औपचारिकताएँ नहीं हैं;
अगर ऐसा होता तो
आस्थाएँ केवल औपचारिकताएँ होतीं,
आस्थाएँ नहीं होतीं!