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"स्त्री और पुरूष / अनुभूति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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स्त्री सहनशील है
धरती की तरह
पुरूष,
स्त्री पर निर्भर है
जल की तरह
स्त्री से इस संसार का
सृजन है
पुरूष जीता
सुखद जीवन है
अगर,
स्त्री का अस्तित्व
कटघरे में होगा
तो पुरूष का व्यक्तित्व
अँधेरे में होगा!