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"अन्धकार का गहराना / अनुभूति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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16:58, 2 मई 2017 के समय का अवतरण

गहराता जाता है
मन में अन्धकार
दिन-ब-दिन
जब
चीखतीं हैं नदियाँ
बरगलाती हैं वादियाँ
अनसुनी कहावतें
बेवक्त घटी आहटें
बरबस पुकार देती हैं
सुलगती चिमनियों से....

तम की मार
एक लम्बे समय से
अनायास ही सहते हुए
सोचती हैं
कि:
शायद एक दिन
कोई तो आयेगा
उनकी उन्मुक्त हँसी
लौटाने को...