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"रोशनदान और खिड़कियाँ / अनुभूति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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ये रोशनदान
बहुत पुराने
हो चुके हैं
मकानों में
रहने वालों ने
मन बहलाती
आमोद-प्रमोद से भरी
हवा के झोंकों से
खड़खड़ाती
इतराती
हुई
खिड़कियाँ लगवा ली हैं
सच में
लोग बहुत सयाने
हो चुके हैं।