भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वंदेमातरम् 2 / सपना मांगलिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सपना मांगलिक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:34, 3 मई 2017 के समय का अवतरण

माँ भारती हम सब की माता
यही है माता यही विधाता
हम सब इसकी संतान हैं
छाती ठोक गर्व से बोलें
मेरा भारत महान है
यही भाव रहे सीने अपने
हो एक पल भी न कम
लगा भाल पे इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
फिर कहलाये सोने की चिड़िया
हो कायम यहाँ चैन औ अमन
कर्ज उतारें मिटटी का इसकी
सौ सौ बार इसे करें नमन
लगा भाल पे इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
सुख समृद्धि का लगायें नारा
तन मन भी चाहे जाए वारा
करें वन्दना चरणों में माँ की
चलो खायें माँ की कसम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
आंचल समेटे माँ अपने बच्चे
हैं चार धरम चारों ही अच्छे
देश की खातिर मर मिट जाएँ
अब अपना यही जतन
लगा भाल पर इसकी मिटटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
दुश्मन जिन्दा नहीं जाने देंगे
आंच न इसपर आने देंगे
इसकी जय जयकार से गूंजें
ये धरती और वो गगन
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
न घर है न ही परिवार हमारा
पंद्रह अगस्त त्यौहार है प्यारा
है संकल्प यही अब अपना
यही अपना एक धरम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्
खड़े सीमा पर जितने भी जवान
कोई हिन्दू है न है मुसलमान
आँख उठा देखे कोई माँ को
लहू हो जाता इनका गरम
लगा भाल पर इसकी माटी
कहें वंदेमातरम्
वंदेमातरम्, वंदेमातरम्