भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चलो बीज बोते हैं / गिरिजा अरोड़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिजा अरोड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:51, 9 मई 2017 के समय का अवतरण

चलो बीज बोते हैं
हरे भरेजीवन का सपना संजोते हैं
चलो बीज बोते हैं

संयम की धरती पर सब्र का बीज बोयेंगे
सदाचार के पानी से सींचेंगे
सुना है, ऐसे बहुत मीठे फल होते हैं
चलो बीज बोते हैं

संकल्प की धरती पर ज्ञान का बीज बोयेंगे
पसीने को पानी बना उसी से सींचेंगे
इसी तरह तो सफलता के फल ढोते हैं
चलो बीज बोते हैं

संवेदना की धरती पर दोस्ती का बीज बोयेंगे
आँख के पानी से इसे सींचेगे
ऐसे खुशी के फल वाले कभी नहीं रोते हैं
चलो बीज बोते हैं

जब मंडी में जाएँ फल और हो इनका विश्लेषण
तो यह न मन में आए
कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से पाए
संतुष्टि के फल वाले ही चैन से सोते हैं
चलो बीज बोते हैं