भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रक्षक / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:29, 12 मई 2017 के समय का अवतरण

हरा-भरा है
उनका परिसर
फव्वारे तरण ताल
हरे भरे लान
तन हरा
मन हरा
भरा-भरा 'लाकर' भी
हरित प्रेम इतना कि
वे जहां भी जाते हैं
हर लेते हैं वहाँ का हरापन
सुखाड़ में फंस जाते हैं
गाँव के गाँव
खेती बिलट जाती है
जहां-जहां जाते हैं
वे हरियाली के रक्षक हैं
हरियाली की बात करते-करते
बटोर लेते हैं वे
अपनी कई पीढ़ियों के लिए
हरियाली।