भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इंद्रधनुष के अर्थ / दिनेश जुगरान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:10, 12 मई 2017 के समय का अवतरण

रुक जाना
शायद आसान था
जैसे नदी के तट पर
रुकी हुई नाव

दूसरी बार
नई तरह से
प्रारंभ कर सकता था
इस यात्रा को मैं भी
रहता उसी गली में
औरों के लिए
सुरक्षित छोड़ आया था जिसे

अपनी संभावनाओं की परिधि में
बौना बना रह सकता था
अपनी परछाइयों से भी छोटा

शायद आसान था

दूरियाँ तय नहीं करता
रुका हुआ जल
तो समुद्र कैसे बनता
धरती के कानों को
कैसे छूतीं उसकी लहरें
रुकना आसान था उसे

मैं लौटा नहीं
कभी भी
उस गली-गलियारे या आँगन में
जुड़ चुका था मेरे साथ
विस्तार का नया दरवाज़ा
युद्ध के नए हौसले
इन्द्रधनुष के नए अर्थ

धरती के एक ही टुकड़े को
देखने में अभ्यस्त आँखें
देख नहीं पातीं
जीवन के आर-पार
वह गली
वर्तमान से
महज़ एक दूरी है
जिसे नापा जा सकता है

मेरे सपनों में नहीं है कोई फूल
आश्वस्त हूँ मैं
एक आग तो बसती है
मेरे सपनों में
जो रोशनी बन जाती है