भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिना छायावाले वृक्षों की कतार / दिनेश जुगरान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:15, 12 मई 2017 के समय का अवतरण

मौसम के जब
बदलते हैं तेवर
पेड़ सिर झुकाकर
दिखते हैं
मातम में
चिड़िया नहीं बैठती
उनकी टहनियों पर
हवा भी नहीं हिलाती
पत्तियों को
और कोई राहगीन भी नहीं बैठता
उसके नीचे

क्या हुआ अचानक
रुख कैसे गए बदल

कल ही तो जब मौसम
था खु़शनुमा
प्रेमी बैठते थे
पेड़ के नीचे
और कुछ
लिपट कर रोते थे
गले लगाकर उसके तने को

सोचता है
आँख मिल जाए किसी
गुज़रते राहगीर से
तो पूछे
कि मौसम बदलने से
क्यों हो गया है
इतना अपरिचित
और अकेला

पेड़ के पास
कोई भी
कठोर शब्द
कहने को नहीं हैं

नए मौसमों के
नए पेड़ उग आए हैं
अचानक चारों ओर
पनपे हैं जो
सूखी आँधी में

बिना छायावाले वृक्षों की
कतार लगी हुई है