भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कालाधन / अखिलेश्वर पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश्वर पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:29, 16 मई 2017 के समय का अवतरण

रोटी हमारा पोषण करता है
रोटी देने वाले हमारा शोषण
चुल्हे की आग डराती है हर रोज
जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं
जलावन कहां से आयेगा?
'जनधन' खाता अब 'अनबन' हो गया है
संदेह की बिजली गरज रही
किसी ने बिना कहे-बताए
डाल दिए लाखों रुपये
पुलिस, बैंक, नेता, पड़ोसी
सब पूछ रहे मेरी कैफियत
क्या कहूँ मैं-
घरवाली के इलाज को एक पैसा नहीं
बिटिया के फटे कपड़ों से झांक रही लाचारी
माँ लड़ रही है टीबी से
कालाधन क्या होता है-
मुझे क्या मालूम!