भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आप्रवासी यादगार / अमर सिंह रमण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमर सिंह रमण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:39, 24 मई 2017 के समय का अवतरण
वही दिनवा जब याद आवेला अँखिया में भरेला पानी रे।
हिन्दुस्तान से भागकर आइली यही है अपनी कहानी रे
भई छूटा, बाप छूटा और छूटी महतारी रे।
अरकटिया खूब भरमवलीस कहै पैसा कमैबू भर-भर थाली रे
वही चक्कड़ मा पड़ गइली, बचवा याद आय गइल नानी रे।
मारिया भैश के जंगल मा बीती मोरी जवानी
तब भी कमाय कमाय के लड़कन के खूब पढ़वली रे।
डॉक्टर, वकील, सेस्तर, जज, सिपाही, मेस्तर खूब बनवली रे
अपना सोचा, कुछ ना भवा बचवा सब पड़गवा पानी में।
बिटिया भागा, बेटवा भागा, होयलान की राजधानी में
बिना मेहनत के माँगकर खाते हें इस भरी जवानी में।
हम तो सरनामवा के जंगल काट-काटकर उन्नति खूब करवली रे
जब सुख करने का बेरिया आवा, तब यही दसा हम पवली रे।