भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परदेश / कारमेन जगलाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कारमेन जगलाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:01, 24 मई 2017 के समय का अवतरण

देश छोड़कर जाते हैं हम
स्वर्ग की खेज में कितने दूर जाते हैं हम
पल भर में बन जाते हैं हम बिदेशिया
पराए लोए, पराए दोस्त, पराए देश

दिल छूटा दिलबर छूटा, देश छूट गया।
बदनसीबी देखिए हमारा आशियाना छूट गया।
खुशी ढँूढने आए हम, सात समंदर पार
कुछ न मिला, हमारा देश छोड़ना हुआ बेकार
यह देश नहीं है अपना
यहाँ हर कोई है बेगाना
अब बस समय का है इन्तजार
कब हम जाएँ अपने देश फिर एक बार।