भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नाम के एक फूल / जीत नराइन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जीत नराइन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSurina...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:43, 24 मई 2017 के समय का अवतरण
हम तोहे पानि पे छोड़ देइला
बहके लौट जा इंद्रियन के दररा अलंग
इ तोहे तुरले रहा दिवाना हाथ से
जैसे तु फुलैले और जेमें से तु गढुवैते-गरहेवात गिर गैले।
अब तु पानि पे उतरान बहे है
भि जबकि उ सब से गहिरा गहिरैया में जाइके घुसे है।
मस्त उतराई बहे एक होला प्यार अब,
बक गर रोकावट जबरै से
तब तु एके अपन ढकना पे थामे चहले,
अब तु गहरैयाँ खालि बहिरे से छुवे है सारे के।
बह, बह ना, बैह जा बेबिस्वासी
इ अब ना भेइगा एगो बीज फूल के
कि खालि एक फूल खात अपन अँगना पे।