"अपन कमजोरि / जीत नराइन" के अवतरणों में अंतर
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संस्किरति के बहाने, अग्गु भग्गु विद्वान बन जाए
पंडित बियास पे बैठे सबके भरमावे, अपने तौरियाए
खालि खोपड़ि में वेद के मन्तर, रैह रैह के पगलाए
पंडित बिचारा ठिक से कहाँ हिंदिए जाने
उप्पर से संस्कृत में अभुवाए।
गैया गाभिन बुलवा दुधान फोर फोर के समझावे,
जवान समझ के पंडित के चतुरपन बोले,
अपन ना जाने हमके का सिखाए
संस्किरतिवालन काँपे अपन कमजोरि के डर से,
जनता से बोले, एके लेव बचाए
ढेड़ जने सोचे दुइ-एक दाईं हवन करा लेई
तो हमार संस्किरतिया सच्चे बच जाए
हिंदि सीखो, हिंदि पढ़ावो, अपन संस्किरति लेव फैला
इहि के पूत बोले, आ तु दिपलोमा मि हाबि मा मि नो साब लेइसि
मोरो, मॉन, आ बुँनलाँगा कबा मुँह बिचकाए।
सरनामी भासा के बोले अइलि-गैलि, इ है संस्किरति बिगार
ना समझे इ बिचार के भिकमंगवन कि इहि से बचल है
अब्बे तलक, एकर हिंदि के परचार।