भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपना देश / देवानंद शिवराज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवानंद शिवराज |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:30, 24 मई 2017 के समय का अवतरण
अपना देश अपना घर
सारे जग मे न्यारा है
माँ का तन ए वतन
तू स्वर्ग से प्यारा है।
मेरी धरती का तन
नित रज तिलक करूँ मैं
आँचल में तेरे बलि हो जाऊँ
सिर तुम्हारा है।
जो करते देश का अपमान
लिया है अपनी माँ का जान।
सेवा निस दिन जो करता
लाल वही माँ का मान।
धन्य है जीवन वही
माँ का चरण जो पखारा है।
सरनामी हिन्दुस्तानी हूँ माँ
जनम जनम हो गोद तेरी माँ
नाम मइया हो सूरीनाम
गिरने दूँगा न तुझे
बड़ा होकर लूँगा था
संकल्प मेरा पृथवी माँ
लक्ष्य यही हमारा है।