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"ऋषि-मुनि / रामदेव रघुबीर" के अवतरणों में अंतर
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(दोहा)
करतब ना छोड़,
प्रति वर्ष याद धराता डोर।
ऋषि मुनि आचारी,
करते हैं प्रचारी
(गीत)
तेरी बिगड़ी भी बन जाई,
गुरू मन्त्र लेलो ले भाई।
सत्य के मनसा-वाचा-कर्मा,
दिहें अति सुख भाई॥
तेरी बिगड़ी भी बन जाई,
ब्रह्मा रचै और बनावै,
विष्णु सारी ओर सँवारे।
महेश सुख देवे और मिटावे,
तीनों अर्थ को भजलो भाई॥
तेरी बिगड़ भी बन जाई।