"गुरु की खोज / सरवन बख्तावर" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरवन परोही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatSur...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:35, 26 मई 2017 का अवतरण
नदिया के इस पार, बैठल रहली उदास,
कोई लाईके, हिया हमके छोर गैल,
बोले हिया तक हमार-तोहार साथ,
अब और आगे कैसे जाय, कैसे करी हम नदिया पार?
इधर तकली, उधर तकली, कोय देखैते न रहा
बस बैठ गैली मान कर के हार
आँख बन्द होयगे, सूत गैली, ओही नदिया के किनारे
सपना रहा, या सच्चे के, पर ओतने में देखान एगो छबि महान,
रोमांच पुलकित हो जात है देहिया, करत उ दास्तान बयानकृ
वोही सुन्दर सावर रूप, होठ पर दिव्य मुस्कान,
मोर मुकुट, गल बनमाला, दिव्य आभूषण, हाथ में बंसी का प्याला,
पीत वस्त्र रूप अद्भुत निराला,
हिरदय से लगायके बोलिस, हम कराबे तोहके नदिया पार,
मुँह से कछु बानी ना निकरल, आँखन बन गैल हिरदय के द्वार,
तब भैल हमके अहसास-
‘‘गुरु गुरु धुनधत फिरा, गुरु था हमरे पास,
जो कृष्ण को गुरु कहा, उ तो न रहा कभी उदास।’’