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"कहाँ छिपकर बैठे हो / सुरजन परोही" के अवतरणों में अंतर
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17:42, 26 मई 2017 के समय का अवतरण
कहाँ छिपकर बैठे हो प्रभु जी, जरा आजा पास हमारे
तेरे बिना तरस रहे हैं, ये दो नैन बेचारे
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
तूने अहिल्या को मुक्त किया
सबरी के बेर भी खा लिया
सूरदास को तार दिया, उनके तार बजाने में
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
गणिका की भक्ति अपार
कुबेर का भर दिया भंडार
हनुमान को कर दिया पार, उनका शीश झुकाने में
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में-
जब द्रोपदी का चीर हरण हुआ
रो-रो किया पुकार मन-ही-मन
तब कृष्ण का डोल गया आसन, न किया देर उनका चीर बढ़ाने में,
बड़ी देर कर दी भगवन, मेरे घर आने में।