भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आगे का रास्ता / सुशीला बलदेव मल्हू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला बलदेव मल्हू |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:15, 26 मई 2017 के समय का अवतरण
जब दिल घसीट कर
पीछे को ले चला
आँखों ने कहा,‘आगे बढ़!
और ढूँढ़ मंजिल नई
पीछे नहीं है कुछ,
केवल खैंडहर तिरि-बितर
आगे मिलेगी तुझको
नई दिशा, नई डगर।
दिखा रही हैं आँखें,
आगे का रास्ता
कदम चल रहे हैं
आगे का रास्ता
बुद्धि बता रही है
आगे का रास्ता
फिर मुड़ कर क्यों देखें,
पीछे का रास्ता।