"जड़ें / भास्कर चौधुरी" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्कर चौधुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:34, 31 मई 2017 के समय का अवतरण
सोचता हूँ
कहाँ होती है
उनकी जड़ें
जो गाँव छोड़
दिल्ली चले जाते है
जिनके पीछे
रह जाते हैं
माँ बाबूजी दद्दा दादी या परदादी
या इनमें से कोई एक या दो
खपरैल की छत बदले जाने के इंतज़ार में मकान
एक बदहाल खेत
पानी को तरसता कुँआ
चंद पेड़ बबूल और इमली के
रिश्तों को निबाहते बर्तन, खाट और
धूल अटीं कक्षा ग्यारवीं या बारह्वीं की किताबें...
सोचता हूँ
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें
जिनकी जड़ें जमी ही नहीं होती हैं कहीं
जो घूमते रहते हैं गाँव से कस्बा कोई
या कस्बे से शहर
सिमटता परिवार लेकर
जिसमें सदस्य केवल तीन या चार ही होते हैं
जो विवश होते हैं फोन पर किसी मित्र को झूट बोलने को
कि वे घर पर होते हुए भी नहीं होते हैं घर पर
जो कभी किसी गाँव कस्बे या शहर को
अपना नहीं कह सके
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें...
कहाँ होती हैं उनकी जड़ें
जो जड़ों से उखाड़ दिये गये हैं
सोचता हूँ...