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"माहिया / सपना मांगलिक" के अवतरणों में अंतर

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शाम सहर, कहर लिखे
दर्द ग़ज़ल जिसका
वो फिर क्या बहर लिखे।


सबने ही ठुकराया
गम बस अपना था
   साथ उसे ही पाया।


लव दर्द तराने हैं
आहट से उसकी
महफ़िल वीराने हैं।


यूँ अरमां दिल मचले
गलियों से उसकी
दीवाने हम निकले।


दिल कैसे संभाले
आँखों में बसते
हैं दर्द भरे नाले।


अब चैन कहाँ दिन को
कितना तड़पाती
बातें तेरी दिल को।


आखिर कुछ तो कहता
रह न सही दिल में
इन आँखों में रहता।


पाकर सब खोती हूँ
तन्हा रातों में
अक्सर मैं रोती हूँ।


अश्कों के धारे हैं
काजल के जैसे
आँखों ने पाले हैं।


पल भर का डेरा है
कल उड़ जाना है
जग रैन बसेरा है।


दिल कहता बेचारा
कुछ नादाँ हूँ मैं
थोडा सा आवारा।


नजरों के पैमाने
आये लौट यहीं
जो कल थे मयखाने।


मेरा दिल बहला दे
आज डुबा खुद में
मुझको पार लगा दे।


है कैसी ये हसरत
दिल को एक घड़ी
मिलती न कहीं राहत।


यूँ देख निशाँ मन में
कोई ढूंढ न ले
गुम तू हो जा मुझमें।


न मुझे कुछ अब भाये
बस पन्थ निहारूं
काश कि तू आ जाए।


गीत मधुर गायेंगे
इश्क मिटा दे तू
हम प्रीत निभायेंगे।


जलती राख बुझा दे
तू धड़कन बनके
मेरा दिल धड़का दे।


क्यूँ इश्क न तू पिघले
इंसा पत्थर के
दिल मोती सा बिखरे।


रात धुंआ खलिश जवां
ले आया मुझको
ये इश्क कहाँ ?।


वो दर्द भुलाता है
लोग समझते हैं
मस्ती में गाता है।


भूल गए मयखाने
पी आये जबसे
नजरों के पैमाने।


किस्मत मीत बनी कब ?
पल भर की खुशियाँ
मंजर बदल गए सब।


मांग रही कुछ रब से
उस भोलेपन ने
दिल जीत लिया तबसे।


जाग उठी ख्वाईशें
ए दिल पहुंचा दे
उन तक फरमाइशें।
 


नींद गयी आँखों से
दिन वो अच्छे थे
जो गुजरे फाकों से।
 


बुलबुल पे नजरें रख
सैय्याद चले हैं
गिरगिट सा रंग बदल।


जीना आसान कहाँ
है संगदिल जहाँ
बचता ईमान कहाँ ?।


बिंदी चाँद बना दो
नेह सितारों से
मेरी मांग सजा दो।


रिश्ता कायम होता
नदिया बन बहती
गर वो सागर होता।


खोटा हैं न खरा है
पाकीजा है दिल
मासूमियत भरा है।


बजती मन की वीणा
वह उठती झर-झर
क्यूँ आँखों से पीड़ा।


नीर नयन छलकाई
भूल चुकी जिसको
याद वही माँ आई।


डूबे जब ख्यालों में
होश किसे रहता
बेनूर सवालों में।


लगता शाप, दुआ भी
वो मेरा दिलबर
अच्छा और बुरा भी।


यूँ साहिल छूट गया
थी नैया भंवर
मांझी भी रूठ गया।


मिलता खैरात नहीं
है इश्क समाधी
लम्हों की बात नहीं।


तू जान निसार न कर
जी लूंगी सदियाँ
थोड़ा प्यार मुझे कर।
 


उल्फत जंजीर नहीं
ये दिल है मेरा
तेरी जागीर नहीं।


जादू सा असर हुआ
वो रूप कमल सा
नजरों में उतर गया।


कितने पाक नज़ारे
दें इश्क गवाही
सूरज, चाँद, सितारे।


डर भंवर से क्या चल
मेरा हाथ पकड़ ले
सागर के पार निकल।



कुछ पीछे छूट गया
सच हो ही जाता
पर सपना टूट गया।


मुझको आकाश बना
या तेरी मर्जी
ज़िंदा अब लाश बना।


इश्क सिला देते हैं
करते है धोखा
नाम वफा देते हैं।


जो हसरत बाकी है
करने को पूरी
इक पल ही काफी है।



बस एक सदा देना
देखूंगी रस्ता
मुझको न दगा देना।


फिर नयन गुबार बहे
दिल तन्हा मेरा
कब तक प्रहार सहे


शूल चुभे भूलों के
देखे फिर आंसू
उन हँसते फूलों के


ख्वाईशें बढ़ने दो
बर्फ हुए अरमां
 तुम धूप निकलने दो


देख उसे फिसल गया
गर्द पडा दिल का
आईना मचल गया


कलियन के भोंरे ने
दिल लूटा मेरा
उस पवन झकोरे ने


बस सबने मन देखा
वो माँ थी जिसने
ये खालीपन देखा


गीतों में प्रीत कहाँ है
गुम रस वर्ण वहीं
मन का मीत जहां है


यूँ दिल सबका जीता
फिर भी मन बर्तन
है निर्धन सा रीता


नील गगन के तारे
गीत करूँ अर्पण
लिखे संग तुम्हारे


जब मन दर्पण देखा
आतुर बहने को
काला सा घन देखा


ये कैसा पागलपन
जीवन दुर्गम पथ
ख्वाइशों का नर्तन


खोना क्या पाना है
जीवन बंजारा
ठौर बदल जाना है


बातों में क्या जाता
कम हैं वो जिनको
इश्क निभाना आता


उफ़ दिल की लाचारी
फितरत चोरी की
करता पहरेदारी


पथ से नज़र हटी कब
मुश्किल सफ़र सही
रुकी मगर थकी कब


देखे कैसे मंज़र
जख्म दिया गहरा
थी किस्मत या खंजर


इंसान कई रूठे
था पर्दा सच्चा
किरदार मगर झूठे


चर्चे अखबारों में
डूबे हैं जबसे
इन मस्त बहारों में


जीते जी दफनाया
क़त्ल सभी हसरत
जब उसने ठुकराया