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"अमर शहीद सिदो-कान्हू / प्रदीप प्रभात" के अवतरणों में अंतर

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जन्मभूमि सिदो-कान्हू के,
भोगनाडीह-कहलाबै।
धन्य छै ई धरती यहीं जग्घा पर,
बचपन मेॅ उछलै कुदै-खेलै।
गुमानी के गोदी मेॅ बैठी,
कखनू पालथी मारी केॅ।
साथी-संगी साथेॅ खेलै
छप-छप पानी टारी केॅ।
सिदू-कान्हू गुमानी मेॅ
पहिलेॅ खूब नहिले छै।
गुमानी नदी के मांटी केरो,
चंदन माथा देह लगैनेॅ छै।
संताल जनजाति लड़ाकू,
नाम उजागर होलोॅ छै।
सिदो-कान्हू, चांद भायरो
इतिहास पुरूष कहलाबै छै।
संताल हुल यहीं धरती सेॅ,
पहिलेॅ होलोॅ छै जारी।
सिदू-कान्हू चांद भायरो,
अंग्रेजोॅ पर पड़लै भारी।
तीस-जून अठारह सौ पचपन मेॅ,
फूकलोॅ गेलोॅ छेलै हूल बिगूल
गवाही छै भोगनाडीह, गाँव,
नय मिललै, अंग्रेजोॅ केॅ छाँव।
अंग्रेजोॅ सेॅ टक्कर लै लेॅ,
भुजा यहाँ पर फड़कै छै।
अंग्रेज-महाजनोॅ के जुल्म मिटाबै खातिर,
कवच हृदय के कड़कै छै।
राजमहल के पहाड़ी जंगल झरना,
सिदो-कान्हू चांद भायरो के डेरा।

लम्बा डेग धरनेॅ जबेॅ निकलै,
सिदो-कान्हू बरगद के नजदीक।
चाँद, भायरो धनुष निकालै,
करै धनुष के डोरी ठीक।
सिदो-कान्हू कहै छेलै जेना होतै,
अंग्रेजोॅ सेॅ आय लेबै फड़ियाय।
तीर-धनुष आरो कुल्हाड़ी सेॅ,
अंग्रेजोॅ के देना छै छितराय।
सिदो-कान्हू आपनोॅ तीरोॅ सेॅ,
अंग्रेजोॅ केॅ देलकै विथराय।
सिदो-कान्हू के आगूं होलै,
शासन-सूरज-अस्त।
अंग्रेज महाजनों केॅ,
करियेॅ छोड़कै पस्त।
ई धरती धन्य-धन्य छै,
ऊ मैय्या के हृदय विशाल।
जे कोखी जनम लेनेॅ रहै
सिदो-कान्हू चांद भायरों रै लाल।
विश्वविद्यालय सिदू-कान्हू मुर्मू दुमका,
अमर शहीदों के नाम सजाबै आपनोॅ भाल।
संताल परगना के चौंक-चौराहा,
सिदो-कान्हू के मूर्ति छै मिशाल।
सिदो-कान्हू सेॅ बढ़लोॅ छै,
विश्व विद्यालय के मान।
11 अप्रैल सिदो के जयन्ती,
30 जून केॅ हूल दिवस मनावै छै।
सिदो-कान्हू, चांद, भायरो मूर्ति आगू
अंग जनपद के लोगेॅ माथोॅ झुकावै छै।