भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आबी गेलै वसंत / प्रदीप प्रभात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप प्रभात |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:59, 5 जून 2017 के समय का अवतरण

पछिया हवा बोली रहलोॅ छै, आबी गेलै बसंत,
कोयल कू-कू करि कहि रहलोॅ आबी गेलै वसंत।
आम मंजरी आबी कहि रहलोॅ छै आबी गेलै बसंत,
महुआ के सुगंध ने कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
चौपाल पर ठोल रोॅ थाप मॅे कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत,
गॉव के होलैया फाग गावी, कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
फागून रंग-अबीर लै आबी कहि रहतोॅ छै आवी गेलै वसंत,
भौंरा प्रेम रस मेॅ डुबी फुलोॅ सेॅ कहि रहलोॅ छै आवी गेलै वसंत।
पछिया हवा बोली रहलोॅ छै वार-वार आवी गेलै वसंत,
परास के कलि फूली कहि रहलोॅ छै आबी गेलै वसंत।
सरसौं के फूल झूमि-झूमि कहि रहलोॅ है, आवी गेलै वसंत।
आबोॅ मिली सब्भै गावोॅ फााग, आबी गेलै वसंत।