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"परदा उठी रहलोॅ छै / प्रदीप प्रभात" के अवतरणों में अंतर
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सच्चाई रोॅ परदा आबेॅ उठी रहलोॅ छै।
स्वार्थ रोॅ मूर्ति साफ दिखाय रहलोॅ छै॥
जे आदमी समानता रोॅ पाठ पठावै छेलै।
ऊ आदमी आबेॅ झूठ नजर आबेॅ लागलै॥
हिनकोॅ दामन छेलै उजरोॅ दग-दग।
आबेॅ धब्बा नजर आबेॅ लाग लै॥
पढ़ै आरो पढ़ाबै छेलोॅ गॉधी विचार।
यहोॅ आबेॅ धुमिल नजर आबै छौ॥
स्वार्थ रोॅ जोॅड़ ऐतना नींचू चल्लोॅ गेलोॅ छौं।
देखोॅ प्रताप के पीछु मान सिंह भाला तानी खड़ा छौ॥
सम्हरै के मौका छौं, आमियोॅ सम्हरोॅ।
नै तेॅ कोरामीन के गोली भी नै बचै तौ॥