भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तोरा बिना (कविता) / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:24, 13 जून 2017 के समय का अवतरण
तोरा बिना ई होली फीका लागै छै,
कोयलिया केॅ बोली हे! तीखा लागै छै।
ठप-ठप-ठप चूयैछे आँखी सें लोर।
करबट बदलतें हे! हो जाय छै भोर।
फाटै छै छाती, लागै छै आघात
केकरा सें कहियै हे! मोॅन केॅ बात
ठप-ठप-ठप चूयैछे आँखी सें लोर।
करबट बदलतें हे! होय जाय छै भोर।
तनियों नैं नीकॅ लागै इंजोर
ममता लुटाय केॅ भेल्हॅे हेॅ कठोर।
कीकरियै बोलऽ नीं मीलैनें छोर?
ठप-ठप-ठप चूयै छे आँखी सें लोर।
करबट बदलतें हे! होय जाय छै भोर।
हवा में हेना छै, मंजर महकोर
करेजाँ तीर मारै छै घुँघरू केॅशोर
मयूरी के आगू में नाचै छै मोर
हिरदय खखोरै छै उठलै हिलोर।
ठप-ठप-ठप चूयै छे आँखी सें लोर।
करबट बदलतें हे! होय जाय छै भोर।
(04 मार्च, 2015 सांझ साढ़े छः)