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"बिधुर बुढ़ापा / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर

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15:53, 13 जून 2017 के समय का अवतरण

एक तेॅ बुढ़ापा आपनैह रोग,
दोसरेॅ बुर्जुग पत्नी रेॅ वियोग।
कोढ़ में खाज।
ऊपरोॅ से बाज।
आगू कुआँ, पीछे खाई।
वें की करेॅ पारे?
सोची केॅ बोलिहॅ भाय।
पाँव थर-थर
देहोॅ में शक्ति नैं
बीमारी से फुर्सत नैं।
कोन-कोन दबाय खैते?
कत्ते दबाय खैते?
पत्नी-
पंच तत्व में बिलीन,
मोॅन एकदम गमगीन।
भीतरे-भीतर हुँकरोॅ।
नैं कानें पारॅ
नैं हँस्से पारॅ।
लोगें की कहतै???
देखोॅ नै-
बूढ़ा कनिआँय लेल कानै छै।
पोता-पोती आगू में छै तैइयो।
हँस्सॅ तेॅ कहतै-
देखों नें
बूढ़ा केॅ

बुढ़िया मरै केॅ तनियों सन फिकिर छै?
खुल-खुल हँस्सै छै बुढ़बा।
खाय पीबी केॅ मगनँ।
टनमन ठन-ठन।
ऐ हालतेॅ मेॅ
बूढ़ापा मेॅ कोन उपाय?
तोॅहीं बताबॅ भाय?
वू विधुर बुजुर्ग भाग्यशाली छै-
जिनखाँ बेटा पुतौहुवेॅ
आपनों कर्त्तव्य समझै छै सेवाकरना।
खास करीक पुत्रवधुएॅ बूझै छैकि
हिनीं ससुर नैं दोसरॅ
बाबू जी हीं छिकथऩ़ ऐनौहं केॅ गौ छै?
नैं तेॅ कष्ट रॅ वर्णन करना बेकार छै।
तुलसीदास जी कहनें छथिन
‘‘पाधीन सपेनहूँ सुख नाहीं’’
सोलहो आना सच होतें देखी लेॅ।
केकरा लेल केॅ बोलै छै
कथील झगड़ा मोल लेतै?
गारी सुनतै?
तोरॅ बाप छिकौंह
तोॅ समझों।
जो बूढ़ां प्रचार करलकै
तबे तॅ-
ज्वालामुखी फूटबै नैं करतै
प्रलय होय जैते।
बूढ़ा केॅ घोॅर मंे रहना मुश्किल।
धकियाय केॅ बाहर करी केॅ
किबाड़ बंद करी लेतै।
नैं तॅ
जेनाँ राखै छौं
तेनाँ कलमच रहॅ।
जे मिलै छौं से खा।
टूटलका खटिया पर सूतॅ
जाड़ा में फटलका कम्बल
ओंहो भागै सें
बोरसी-बरी कहाँ से?
नै तॅ-
रास्ता देखँ।
जहाँ मोॅन हुहौ जा।
बेचारा विधुर की करतै?
कहाँ जैते?
आगू नाथ नैं पीछू पगहा।
अगर जों बेटा विदेश में छौं
या बाहर कमाय छौं
परिवार साथैं छै,
मौज मनाय से फुर्सत कहाँ छै?
तोरा कथिलेल देखथौं।
तोॅय आपनों सोचोॅ।
केनाँ रहभौ?
की खैभौ?
मरला पर देखै लेल नैं अयथौं,
कुत्ताँ खाँव याकि गीदड़ें।
कौआं नोंचौंह कि गिधें।
सराधी केॅ सपना छोड़ी दे।
अपनाँ देशॅ में-
ई हालात छेलै नैं।
माता पिता केॅ
देवी देवता नाँकी पूजै छेलै।
बेटा पुतोहू नेॅ
बुढ़ापा केॅ लाठी होय छेलै बेटा पुतोहूँ।
विधवा/विधुर होला पर-
आरोॅ मान भाव ज्यादा।
माय/बाबू जी केॅ
कोनों दुख नैं हो जाय।
टोलाँ/समाजेॅ की कहतै।?
लाजें गराने घेरै छेलै।
संयुक्त परिवार के प्रचलन छेलै
कोय नैं कोय देखथै छेलै।
विदेशी प्रभाव सेॅ-
अपनों देशॅ केॅ
नवयुवक बर्बाद होय रहल छै।
नैतिकता समाप्त छै।
जरूरत छै-
बचपन सेॅ ही संस्कार बदलैॅ केॅ-
देश में हीं रोजगार के व्यवस्था करै के।
पुरातन शिक्षा पद्धति लागूं करै केॅ।
जाति केॅ खाई भरै केॅ जरूरत छै।
सर्वधर्म समन्वय केॅ जरूरत छै।
जाति दूये गो छै7
पुरुश जाति आरो स्त्री जाति।
नैं तॅ देश रॅ भगवानें मालिक छै।
प्रगति की होयतै अमन चैन
कहाँ से?
ऐ लेली सब कुछ भुलाय केॅ
विचार बदलेॅ।

19/07/15 दोपहर दो सेॅ सायं सवा पाँच।