भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विकट समस्या / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:15, 13 जून 2017 के समय का अवतरण

रही-रही केॅ मोॅन हहरै छै,
केनाँक जिनगी कटतै जी?
दिन-रात असकल्लो रहना
कश्ट केनॉ केॅ हटतै जी?
तनी-मनी बच्चा केॅ फुर्सत
पढ़ै लिखै में दिन गुजरै।
सुबह रात सबक तैयार
हमरा लग कखनी कुरचै?
मौका पाबी केॅ आबै छै,
हँस्सी बोली जाय छै।
जागलॅ रहलॅ अगर रात केॅ
नूँनू साथैं खाय छैं।
तखनी मोंन मगन होय जाय छै,
नींद भी नीके आबै छै।
नै तॅ मन झमान असक्लॅ
जन्नेॅ तन्नेॅ भागै छै।
बात चीत केकरा सेॅ करियै,
कत्तेॅ पढ़ियै लिखियै जी?
माथों भारी लगै छै हमरा
केकरा लग सुसतैयै जी?
जो जों उमर बढ़ै छै हमरों
तों तों समस्या बाढ़ै छैं
बोॅर बीमारी अलगे होयछै।
डॉ. रुपया काढ़ै छै।
एक्के पेन्शन की-की करतै,
मंहगाई सुरसा गरजै छै।
केकरौं हेॅ चिन्ता एकरॅ नैं छै
कहीं से रुपया बरसै छै?

23/07/15 प्रातः सवा छह