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"बेरथ जीवन / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर

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पत्नी बिना पुरुष रोॅ जीवन
नीरस छै जग जाहिर।
वृथा यहाँ रहना छै माँ हे
दुख भोगै केॅ खातिर।
सुख दुख केॅ आना-जाना तॅ
आजीवन लागलेॅ रहतै।
प्रारब्ध मिटाना सपना केबल
जे होना छै होबे करतै।
विरहताप जे अंतहीन छै,
ओकरे सहना मुश्किल छै।
चौथापन खुद बिकट समस्या
हल करना की समतल छै।
शक्ति कलम में मिलै जों मइैया।
अमर काव्य रचना करियै।
खालीपन जीवन भरमैइया
गीत लाद सें ही भरियै।

30/12/15 अपराहन 12.10