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परबोॅ केॅ दिन बड़ा कटीला
रही-रही केॅ भौंकै छै।
हरदम तोरे याद पड़ै छै
विरह आग केॅ झोंकै छै।
बढ़ियों खैबोॅ माहुर लागै
असकल्लॅ जीना बेकार।
परम पिता सें करोॅ प्रारथना
वहीं होतै हमरोॅ त्योहार।
है जीवन सें मरना नींकॅ
दिल दिमाग केॅ चैन कहाँ?
जो रंग ओबेॅ रैन कहाँ?
हम्में धरतीं तों आकाश में
होतै केनाँ मिलन बोलॅ?
जाय केॅ पूछौ धर्मराज सें
की रहस्य छै ई खोलॅ?
15/01/16 मकर संक्रांति।