भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिरदय फाटै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:58, 13 जून 2017 के समय का अवतरण

एक दिन तोंहीं कहने छेल्हौ।
हमरा बिना ललैभौ जी।
नै जा कहीं दूर तनियों टा,
गपशप से बहलै-भौं जी।
तोंहे सच्चे जबसें गेलहौ,
हमरोॅ मोॅन ललाबै छै।
आगू पीछू कुछ नैं सूझै
रही-रही अकुलाबै छै।
तोरा बिना बेरथ छै सब कुछ
मोॅन उछीनों लागै छै।
आँखी में तोंही धूरे छै।
तों हीं सगरो जागै छै।
मतुर हाय लौटी आबै छै।
कुछ नैं बोले बाजे छै।
तनियें दूर रहै छौ हरदम
मुदा पास नै आबै छै।
ई परिबरतन केनाँक भेल्हों
प्राण प्रिया बतलाबऽ नीं।
गलाँ लगी जा फुरती आबऽ
मोॅन हमरेऽ बहलाबऽ नीं।
दुनिया देखी मोॅन हहरै छै,
बाग-बगीचाँ काटै छै।
कोइलिया कूकै छै जखनी
तखनी हिरदय फाटे छ।

17/03/16 अपराहन पौन चार बजे