"अमर प्यार / कस्तूरी झा 'कोकिल'" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कस्तूरी झा 'कोकिल' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:59, 13 जून 2017 के समय का अवतरण
तोरोॅ वाला प्यार कहाँ अब?
मिलतै ई संसार में।
मतलब केॅ सब साथी संगी
डुबलऽ छै व्यापार में
सुख मेॅ दुःख मेॅ सदा समर्पित
तन सेॅ मन सेॅ रहलौह जी।
भेदभाव तनियों नैं रहलै
सच्चा प्यार लुटैलौह जी।
तोरऽ बराबर कोय नैं करतै,
ई तोॅय पक्का मानीॅ लेऽ।
अमर प्यार एकरैह बोलै छै,
ये हो बतिया जानीॅ लेऽ।
याद पड़ै छै जखनी-जखनी,
तखनी मोॅन बौराबै छै।
अगल-बगल सूना पाबी केॅ
तन-मन केॅ तड़पाबै छै।
खोजी-खाजी थक्की गेलियै,
पता ठिकानोॅ नैं मिललै।
मगर हार नैं मानबै तब तक
जब तक नैं कमल खिललै।
धरती आसमान सें पूछ बै
पूछ बै गंगा धारा सें
हवा अनल सें भी पूछबै हम
पूछबै त्रिभुवन सारा सें।
जब तोॅय साँस नै छौड़बै
पंचतत्व मेॅ मिल खोजबै।
मिलबे करभौॅ कहीं एक दिन
धर्मराज सें भी पूछबै।
फागुन पूर्णिमा होलिकोत्सव 23/03/16