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"यादें तुम्हारी / मुकेश नेमा" के अवतरणों में अंतर

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चली आती हैं
चिलचिलाती दोपहरियों में
परदो पर खस के
पानी की बौछार सी
पुरानी यादें

लगता है महकने
सदैव मन तुम्हारी
सुगँध अनूठी से
और डोलता हूँ मैं
बौराया हुआ सा

हो आता है स्मरण
गिरते ऊँचाई से
पचमढी के
प्रवाहमय डी फ़ॉल में
आल्हादित फुहारों सा
बहुत सी बूँदों भरा,
चेहरा लिये गुलाबी
उमगते हुये तुम्हारा
करना जिद
रूकने की देर तक
भीगी थी तब तुम
मैं भीग रहा हूँ अब भी