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"मुझे भर पता है / मुकेश नेमा" के अवतरणों में अंतर

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पता है मुझे
हो क्यों
इतनी सुन्दर
बनाने के लिये
तुम्हें ज़रूर
अपने ही हाथों
गूँथा होगा
भगवान जी ने
शहद मिला मैंदे को

पर मंत्रमुग्ध वे
कृति पर अपनी ही
लगा बैठे
कुछ ज़्यादा ही वक़्त
सालों साल, सदियाँ
या और भी ज़्यादा
इतने में तो वो
इस संसार को
बना सकते थे
रहने लायक
और अधिक

क्योकि
तय है यह तो
वो अब है नहीं
अपनी तय जगह पर
या रह नहीं गई है
दिलचस्पी उन्हें
उन कामो में
जिनके लिये हैं वो

पता है मुझे
छोड़छाड़ सब
आ टिके है
तेरी गली के पास वाले
नुक्कड़ के मंदिर में
रहो आभारी मेरी
मुझ तक ही है
यह रहस्य
नहीं जानती दुनिया
वरना तुम
बड़ी आसानी से
ठहरायी जा सकती हो
ज़िम्मेदार सारी
मुश्किलों के लिये
दुनिया की