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बिना किसी
प्रश्नचिन्ह के
अपना संसार छोड़
सहज भाव से,
साथ पिता के चयन के
हो लेती है नववधू
कितना अनोखा
रहस्य भरा है यह
अब तक अनदेखा
हो जाता है कैसे
सार्थकता आँखों की
विश्वास इतना
उपजता होगा कहाँ से
सहसा ही अपरिचित
हो जाये भरोसा
तार मन की वीणा के
उस एक के लिये ही
बजने लगते हैं कैसे!
अब तक अनसुना राग
हो उठता है प्रीतिकर कैसे?
सोचता हूँ
मैं जितना भी
चकित हो जाता हूँ
और अधिक