भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नामहीन / शिवशंकर मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | तुम्हारा कोई नाम नहीं | |
तुम्हें सभी, सब जगह | तुम्हें सभी, सब जगह | ||
समान रूप से पुकारते हैं, माँ | समान रूप से पुकारते हैं, माँ | ||
− | इसीलिए | + | इसीलिए तुम्हें सभी ही प्रिय हैं |
− | इसीलिए | + | इसीलिए तुम्हें किसी की गाली नहीं लगती। |
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
मैं जुलूस में सब से पीछे था | मैं जुलूस में सब से पीछे था | ||
मैं पीछे था, इस का मुझे दुख नहीं था | मैं पीछे था, इस का मुझे दुख नहीं था | ||
− | + | क्योंकि तब मेरी जिम्मेदारी सब से अधिक थी | |
मेरी आवाज में अनुशासन था | मेरी आवाज में अनुशासन था | ||
ओर सम्पूर्ण पंक्ति की शक्ति थी-- | ओर सम्पूर्ण पंक्ति की शक्ति थी-- |
19:10, 21 जून 2017 के समय का अवतरण
तुम्हारा कोई नाम नहीं
तुम्हें सभी, सब जगह
समान रूप से पुकारते हैं, माँ
इसीलिए तुम्हें सभी ही प्रिय हैं
इसीलिए तुम्हें किसी की गाली नहीं लगती।
नामहीन, हृदय में तुम्हें ही लिए हुए, माँ
उस दिन मैं जुलूस में शामिल हो गया
मैं जुलूस में सब से पीछे था
मैं पीछे था, इस का मुझे दुख नहीं था
क्योंकि तब मेरी जिम्मेदारी सब से अधिक थी
मेरी आवाज में अनुशासन था
ओर सम्पूर्ण पंक्ति की शक्ति थी--
दर्प था।
मुझे दुख नहीं था-
क्योंदकि तब मेरा भी कोई नाम नहीं था।