भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिनगी अंत / नवीन ठाकुर ‘संधि’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:12, 22 जून 2017 के समय का अवतरण

एैलेॅ दिवाली, एैलेॅ दिवाली,
घर-घर में अलख जगावै वाली।

घर-आंगन आरो दुआर,
दीप जलैबेॅ धारे धार।
कीड़ा मकौड़ा मरेॅ बौछार,
येहेॅ छेकै दीया रोॅ सार।
सब्भै रोॅ मनों में जोश जगाबै वाली

खाय छै सभ्भें खीर पूड़ी, पुआ, पकवान,
छोड़ै बम पड़ाका साँझ-विहान।
पड़ै छै केकरोॅ-केकरोॅ खतरा में जान,
ओकरोॅ पीछूँ देखोॅ छुरछुरिया रोॅ शान।
अन्हरिया में दीपदान दै वाली,

कातिक महीना कत्तेॅ मनभावन,
माय बहिन नहाय केॅ होय छै पावन।
वंश बुनियाद बढ़तै भरतै दामन,
येॅहेॅ दिन राम रोॅ वन सें होलै आगमन।
घर-घर गेलै "संधि" लैकेॅ खुशियाली।