भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के! / बलबीर सिंह 'रंग'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:09, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!
पुराना सब कुछ बुरा न रहा,
नया भी सब कुछ नहीं महान;
प्रगति के संग सँवरते रहे,
चिरंतन जीवन के प्रतिमान।

हम प्रतिहारी नहीं टूटती परम्पराओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!

बधिरता को क्या सौंपा जाय?
शांति का ओजस्वी आह्वान,
क्रांति क्या कर ले अंगीकार;
आधुनिक सामंती परिधान?

हम सहकारी नहीं, अनर्गल आशंकाओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!

तिमिर की शर-शय्या पर पड़ा,
दे रहा है प्रवचन दिनमान;
निरंतर उद्घाटित हो रहा,
चाँद तारों का अनुसंधान;

हम आभारी नहीं कलाविद् अभियन्ताओं के!
हम अधिकारी नहीं समय की अनुकम्पाओं के!