"ब्याही बेटी / मनोज चौहान" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:46, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
बर्षों पहले
पास के गाँव में
ब्याही बेटी
रहती है फिक्रमंद आज भी
बूढी माँ के लिए
जबकि वह खुद भी
बन चुकी है अब
दादी और नानी।
अक्सर गुजरती
मायके के साथ लगती सड़क से
खिंची चली आती है
आँगन में बैठी
बूढी माँ के पास।
वह चुरा लेती है कुछ पल
माँ की सेवा के लिए
अपने भरे – पुरे परिवार की
जिम्मेदारियों के बीच भी।
पानी गर्म कर
नहलाती है माँ को
धोती है उसके कपड़े – लत्ते
संवारती है सलीके से
सिर पर उलझी हुई चांदी को
शायद वैसे ही
जैसे करती होगी माँ
जब वह छोटी थी।
बूढी माँ देखती रहती है
टुकुर – टुकुर
विस्मृत हुई स्मृतियाँ
बेटी के बचपन की
लगाती हैं छलांग अवचेतन से।
फेरती है हाथ प्यार से
बेटी के सिर पर
भावनाएं छलक पड़ती हैं
जीर्ण नेत्रों से
न चाहकर भी।
द्रवित हुई बेटी चाहती है दिखाना
मजबूत खुद को
बंधाती है ढाढस माँ को
उम्र की इस अवस्था में
अब बेटी
हो जाना चाहती है ‘माँ’!