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"धरती माँ के बच्चे / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया के आँगन में
 
दुनिया के आँगन में
 
ख़ुशबू भर जाने दो।
 
ख़ुशबू भर जाने दो।
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16:21, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

ये जो देख रहो हो
तुम फूलों के गुच्छे
ये भी हैं तुम जैसे
धरती माँ के बच्चे।

इन्हें देखकर मधुर
गीत, पंछी गाते हैं
थकी हुई आँखों में
सपने तिर जाते हैं।
 
उजली रातों में ये
लगते नभ के तारे
दिन में इंद्रधनुष-से
मोहक प्यारे-प्यारे।

जब तक ये हैं,तब तक
भू पर सुंदरता है
भोली-भाली परियों
की-सी कोमलता है।

पौधों की डालों पर
इनको मुसकाने दो,
दुनिया के आँगन में
ख़ुशबू भर जाने दो।