भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन की चादर / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरजीत कौंके |अनुवादक= |संग्रह=बन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:27, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

निचोड़ दो मुझे
गीले कपड़े की तरह

निचुड़ जाए सारी मैल
जो मन की चादर पर लगी

द्वेष, निर्मोह
झूठ, कपट
फरेब की मैल
जो मन की चादर जमी
जन्म हो गये धोते इसे
धुली बार-बार
हज़ार बार
लेकिन उतरती नहीं मैल

अच्छी तरह
धो डालो
मन मेरे की
मैली चादर
निचोड़ दो
अच्छी तरह इस को
और दे दो नील

चमक उठे एक बार फिर से
मेरे मन की सफेद चादर।