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"बीन / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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18:36, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

जोगी जब
मन के सरूर में आकर
बीन होठों से लगाता
भीतर की तड़प
हवा बन के
बीन में उतरती
जोगी बीन बजाता

जोगी बीन बजाता
तो नागिनें दूर-दूर से
झूमती आतीं
बीन के इर्द गिर्द
नाचने लगती
बीन की आवाश गहरी
और गहरी होती जाती
और बुलंद
नागिनें मस्त हो कर
बीन की धुन पर झूमने लगतीं

जोगी लेकिन
नागिनों को वश में करने का
मंत्र नहीं था जानता

बीन जब शिखर पर पहुंचती
और शिखर पर
आखिर थमती-थमती
थम जाती

बीन खामोश होती
तो नागिनें तड़प उठतीं
क्रोध् में फुंकारतीं
जोगी को डँक मारतीं

ज़हर
जोगी की नसों में दौड़ता
वह तड़प उठता
दर्द और नशे में मदहोश
पृथ्वी पर मचलता
जोगी कुछ देर तड़पता
कुछ देर छटपटाता

लेकिन जैसे ही ज़हर का असर
हल्का होने लगता
जोगी फिर बीन उठाता
 होठों से लगाता

जोगी बीन बजाता।