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"दाग / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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10:30, 27 जून 2017 के समय का अवतरण

लगता था
उसके जाने के बाद
पृथ्वी थम जाएगी
ऋतुओं का चक्कर रुक जाएगा
सूरज चाँद हो जायेंगे
मद्धम से
समंदरों में
रेत भर जाएगी
सारी पृथ्वी पर
काली गहरी रात पसर जाएगी

लेकिन
कहीं कुछ नहीं हुआ
पृथ्वी उसी तरह घूमती रही
ऋतुएं उसी तरह आती जाती रहीं
चमकते रहे चाँद सूरज
पक्षी चहकते फूल टहकते
चढ़ते रहे दिन और रात
उसी तरतीब में

सब कुछ वैसे का वैसा था
सिर्फ मन पर एक ज़ख्म के
हल्के से दाग के सिवा...।