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"मुझे पता है / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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10:34, 27 जून 2017 के समय का अवतरण

मुझे पता है
मेरी कविताएँ
तुमने कभी नहीं पढ़नी
लेकिन फिर भी
अंत के जुनून में
लिखे जा रहा हूँ
कविताएँ

मेरे बोल गूँजेंगे हवा में
पवन में घुल जाएगी
मेरी आवाज़
ब्रहामाण्ड में बिखर जायेंगे
मेरे शब्द

हवा से पृथ्वी पर
गिर जाएंगे कुछ शब्द
कुछ उग पड़ेंगे बीज बनकर
महक पड़ेंगे फ़िज़ा में
खुश्बू उनकी कहीं न कहीं
कभी न कभी
तुम्हारी साँसों में जा मिलेगी

बस यही सोच कर
अंत के जुनून में
लिखे जा रहा हूँ कविताएँ।