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"भटकन / अमरजीत कौंके" के अवतरणों में अंतर

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10:34, 27 जून 2017 के समय का अवतरण

तुम्हें पकड़ने के लिए
मैं कभी इधर
कभी उधर
भटकता हूँ

तुम परछाई की तरह
कभी इधर
कभी उधर दिखती
लुप्त हो जाती

तुझे पकड़ने की
इच्छा में ही
शायद मेरी सारी भटकन
छुपी हुई है

काश
मुझे पकड़ने का नहीं
छोड़ने का ढंग आता

इस तरह ही शायद
मैं तुम्हारी याद को
छल पाता...।